तेरे ही क़दमों में मरना भी, अपना जीना भी,
कि तेरा प्यार है दरिया भी, और मीना भी;
तेरी नज़र में सभी आदमी बराबर हैं,
तेरे लिए जो है काशी, वही मदीना भी;
मेरी निगाह को इसकी ख़बर है शायद,
हर हार में होता नहीं, तुझसा नगीना भी;
हसरत ये है कि खुद को, तेरे हवाले कर दूं,
हमने सीखा है मरना तुमसे और जीना भी;
बस एक दर्द की मंज़िल है, और एक में हूँ,
कुछ पाने के लिये जरूरी है, इसको पीना भी;
मजिंल मेरी दूर सही पर रास्ता पास तो है,
जब चल ही पडा हूँ तो पास है मेरा सीना भी।
किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई।
सबा के पाँव थक गये मगर बहार आ गई।
चमन की जश्न-गाह में उदासियाँ भी कम न थीं।
जली जो कोई शम्म-ए-गुल कली का दिल बुझा गई।
बुतान-ए-रंग-रंग से भरे थे बुतकदे मगर।
तेरी अदा-ए-सादगी मेरी नज़र को भा गई।
मेरी निगाह-ए-तिश्ना-लब की सर-ख़ुशी न पूछिये।
के जब उठी निगाह-ए-नाज़ पी गई पिला गई।
ख़िज़ा का दौर है मगर वो इस अदा से आये हैं।
बहार 'दर्शन'-ए-हज़ीं की ज़िंदगी पे छा गई।
*संत दर्शन सिंह जी महाराज*
आज भीगी हैं पलकें किसी की याद में,
आकाश भी सिमट गया है अपने आप में।
औस की बूँद ऐसे गिरी है ज़मीन पर,
मानो चाँद भी रोया हो उनकी याद में।
निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी का सलाम आया तो क्या होगा,
अग़र फिर तर्क-ए-तौबा का पयाम आया तो क्या होगा।
हरम वाले तो पूछेगें बता तू किसका बंदा है,
ख़ुदा से पहले लव पर उनका नाम आया तो क्या होगा।
मुझे मंज़ूर उनसे मैं ना बोलूंगा मगर नासेह,
अगर उनकी निगाहों का सलाम आया तो क्या होगा।
मुझे तर्क-ए-तलब मंज़ूर लेकिन ये तो बतला दो,
कोई खुद ही लिए हाथो में जाम आया तो क्या होगा।
मुहोब्बत के लिए तर्क-ए-ताल्लुक ही ज़रूरी हो,
मुहोब्बत में अगर ऐसा मक़ाम आया तो क्या होगा।
गजल के रचनाकार:-- संत दर्शन सिंह जी महाराज
🙏�मेरे मुर्शिद
कभी आकर देख लो हमारी आँखों में भी ....
तेरी तस्वीर के आगे कोई नजारा ही नही.....
खो गए हैं तेरे इश्क में हम इस कदर कि .....
तेरे नाम के बिना कहीँ गुज़ारा ही नही ....
💐🙏�💐🙏�💐🙏�💐🙏�*
वो पैकर-ए-बहार थे जिधर से वो गुज़र गये,
ख़िज़ाँ-नसीब रास्ते भी सज गये सँवर गये।
ये बात होश की नहीं ये रंग बेख़ुदी का है,
मैं कुछ जवाब दे गया वो कुछ स्वाल कर गये।
मेरी नज़र का ज़ौक़ भी शरीक़-ए-हुस्न हो गया,
वो और भी सँवर गये वो और भी निखर गये।
हमें तो शौक़-ए-जुस्तजू में होश ही नहीं रहा,
सुना है वो तो बारहा क़रीब से गुज़र गये।
कि तेरा प्यार है दरिया भी, और मीना भी;
तेरी नज़र में सभी आदमी बराबर हैं,
तेरे लिए जो है काशी, वही मदीना भी;
मेरी निगाह को इसकी ख़बर है शायद,
हर हार में होता नहीं, तुझसा नगीना भी;
हसरत ये है कि खुद को, तेरे हवाले कर दूं,
हमने सीखा है मरना तुमसे और जीना भी;
बस एक दर्द की मंज़िल है, और एक में हूँ,
कुछ पाने के लिये जरूरी है, इसको पीना भी;
मजिंल मेरी दूर सही पर रास्ता पास तो है,
जब चल ही पडा हूँ तो पास है मेरा सीना भी।
किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई।
सबा के पाँव थक गये मगर बहार आ गई।
चमन की जश्न-गाह में उदासियाँ भी कम न थीं।
जली जो कोई शम्म-ए-गुल कली का दिल बुझा गई।
बुतान-ए-रंग-रंग से भरे थे बुतकदे मगर।
तेरी अदा-ए-सादगी मेरी नज़र को भा गई।
मेरी निगाह-ए-तिश्ना-लब की सर-ख़ुशी न पूछिये।
के जब उठी निगाह-ए-नाज़ पी गई पिला गई।
ख़िज़ा का दौर है मगर वो इस अदा से आये हैं।
बहार 'दर्शन'-ए-हज़ीं की ज़िंदगी पे छा गई।
*संत दर्शन सिंह जी महाराज*
आज भीगी हैं पलकें किसी की याद में,
आकाश भी सिमट गया है अपने आप में।
औस की बूँद ऐसे गिरी है ज़मीन पर,
मानो चाँद भी रोया हो उनकी याद में।
निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी का सलाम आया तो क्या होगा,
अग़र फिर तर्क-ए-तौबा का पयाम आया तो क्या होगा।
हरम वाले तो पूछेगें बता तू किसका बंदा है,
ख़ुदा से पहले लव पर उनका नाम आया तो क्या होगा।
मुझे मंज़ूर उनसे मैं ना बोलूंगा मगर नासेह,
अगर उनकी निगाहों का सलाम आया तो क्या होगा।
मुझे तर्क-ए-तलब मंज़ूर लेकिन ये तो बतला दो,
कोई खुद ही लिए हाथो में जाम आया तो क्या होगा।
मुहोब्बत के लिए तर्क-ए-ताल्लुक ही ज़रूरी हो,
मुहोब्बत में अगर ऐसा मक़ाम आया तो क्या होगा।
गजल के रचनाकार:-- संत दर्शन सिंह जी महाराज
🙏�मेरे मुर्शिद
कभी आकर देख लो हमारी आँखों में भी ....
तेरी तस्वीर के आगे कोई नजारा ही नही.....
खो गए हैं तेरे इश्क में हम इस कदर कि .....
तेरे नाम के बिना कहीँ गुज़ारा ही नही ....
💐🙏�💐🙏�💐🙏�💐🙏�*
वो पैकर-ए-बहार थे जिधर से वो गुज़र गये,
ख़िज़ाँ-नसीब रास्ते भी सज गये सँवर गये।
ये बात होश की नहीं ये रंग बेख़ुदी का है,
मैं कुछ जवाब दे गया वो कुछ स्वाल कर गये।
मेरी नज़र का ज़ौक़ भी शरीक़-ए-हुस्न हो गया,
वो और भी सँवर गये वो और भी निखर गये।
हमें तो शौक़-ए-जुस्तजू में होश ही नहीं रहा,
सुना है वो तो बारहा क़रीब से गुज़र गये।
No comments:
Post a Comment